संघ एवं राज्य क्षेत्र

संघ एवं राज्य क्षेत्र

1. राज्योँ का संघ

- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 मे भारत को राज्योँ का संघ कहा गया है। केंद्र शब्द का कहीँ भी प्रयोग नहीँ किया गया है।

- डी. डी. बसु के अनुसार भारत का संविधान एकात्मक तथा संघात्मक का सम्मिश्रण है।

- के. सी. व्हीलर के अनुसार भारत का संविधान संघीय कम और एकात्मक अधिक है, उनके अनुसार यह अर्द्ध संघीय है। भारत मेँ वर्तमान मेँ 28 राज्य तथा 7 संघ राज्य क्षेत्र हैं। संघ राज्य क्षेत्रोँ मेँ दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अलग दर्जा प्रदान किया गया है।

- शक्तियोँ का केंद्र तथा राज्योँ के बीच विभाजन किया गया है। संघ सूची मेँ 99 विषय, समवर्ती सूची मेँ 52, तथा राज्य सूची मेँ 61 विषय सम्मिलित हैं।

- भारतीय संघ मेँ अवशिष्ट विषय केंद्र सरकार के पास है।

- भारतीय संघ की इकाइयों (राज्यों) को अपना संविधान रखने की अनुमति नहीँ है।

- पर कुछ राज्यों जैसे अनुछेद 370 मेँ जम्मू कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान की गई है। इसी प्रकार अनुच्छेद 371 के अंतर्गत आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, अनुच्छेद 371 क के अंतर्गत नागालैंड अनुच्छेद 371ख के अंतर्गत असम, अनुच्छेद 371ग के अंतर्गत सिक्किम के लिए विशेष प्रावधान है।

2. राज्यों के परिवर्तित नाम

पुराना नाम - नया नाम

मद्रास - तमिलनाडु

आन्ध्र - आंध्रप्रदेश

त्रावणकोर-कोचीन - केरल

मैसूर - कर्नाटक

सयुंक्त-प्रान्त - उत्तर प्रदेश

लक्काद्वीप, मिनीकाय एवं अदिनीद्वीप समूह- लक्षद्वीप

- भारतीय संघ की इकाइयोँ को विदेशों से सीधे व्यापार करने एवं ऋण लेने का भी अधिकार नहीँ है।

- भारतीय संघ के राज्य आर्थिक सहायता के लिए संघीय सरकार पर निर्भर करते हैं।

- राष्ट्रीय आपातकाल घोषित होने के समय संपूर्ण व्यवस्था एकात्मक राज्य के रुप मेँ कार्य करने लगती है।

- भारतीय संघ व्यवस्था कनाडा की संघीय व्यवस्था से अधिक समानता रखती है। भारत मेँ एकल नागरिकता प्राप्त है। संघ की इकाइयोँ को पृथक नागरिकता प्राप्त नहीँ है।

- केंद्र सरकार को राज्योँ की सीमाओं मेँ परिवर्तन का अधिकार है।

- संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है, यदि वह राष्ट्रीय महत्व का हो या राष्ट्रपति शासन लागू हो।

- यदि समवर्ती सूची के विषयोँ पर राज्य तथा केंद्र दोनो ही कानून बनाते है, तो केंद्र का कानून मान्य होता है।

- आंध्र प्रदेश भाषाई आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था।

3. नए राज्योँ का प्रवेश या स्थापना

- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार नए राज्योँ के प्रवेश के संबंध मेँ संसद को दो प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गई है –

- नए राज्यों को संघ मेँ सम्मिलित करने की शक्ति।

- नए राज्योँ की स्थापना करने की शक्ति।

प्रथम शक्ति ऐसे राज्यों से संबंधित है जो पहले से ही विद्यमान हैं, अर्थात अस्तित्व मेँ है और दूसरी शक्ति भविष्य मेँ अर्जित या स्थापित किए जाने वाले राज्य से संबंधित है।

4. नए राज्योँ के निर्माण की प्रक्रिया

- अनुच्छेद 3 मेँ नए राज्योँ के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं व नामों मेँ परिवर्तन के संबंध मेँ प्रावधान है।

- संसद साधारण बहुमत से पारित कानून द्वारा नए राज्योँ के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्योँ के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों मेँ परिवर्तन कर सकती है।

- नए राज्योँ के निर्माण तथा पहले से विद्यमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों मेँ परिवर्तन से संबंधित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुशंसा के बिना संसद के किसी भी सदन मेँ नहीँ लाए जा सकते।

- यदि राज्य-विधायिका उस निर्दिष्ट समय सीमा के अंदर अपना मत नहीँ देती, तो समय-सीमा बढ़ाई जा सकती है।

5. राज्योँ का पुनर्गठन

- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न क्षेत्रोँ से भाषा के आधार पर राज्योँ के पुनर्गठन की मांग उठने लगी।

- भाषा के आधार पर राज्योँ के पुनर्गठन के मुद्दे पर अध्ययन करने के लिए संविधान सभा ने नवंबर 1947 मेँ एस. के. धर आयोग बैठाया।

- ‘धर आयोग’ की सिफारिशोँ पर विचार करने के लिए 1948 के अपने जयपुर अधिवेशन मेँ कांग्रेस ने तीन सदस्योँ वाली समिति गठित की।

- इसके तीन सदस्यों जवाहर लाल नेहरु, बल्लभ भाई पटेल तथा पट्टाभिसीतारमैया के नाम पर यह समिति जे.वी.पी. समिति के नाम से प्रसिद्ध हुई।

- इस समिति ने राज्योँ के पुनर्गठन के लिए भाषा के आधार को स्वीकार नहीँ किया।

- इसने सुझाव दिया कि सुरक्षा, एकता तथा राष्ट्र की आर्थिक संपन्नता को राज्योँ के पुनर्गठन का आधार होना चाहिए। इसकी सिफारिशों को 1949 मेँ कांग्रेस कार्यकारणी समिति ने स्वीकार कर लिया, परंतु दक्षिण के राज्यों की विशेषतः तेलुगु भाषी क्षेत्रोँ मेँ भाषा के आधार पर राज्योँ के पुनर्गठन की मांग जोर पकड़ने लगी।

- चूंकि तेलुगु भाषी क्षेत्रोँ मेँ आंदोलन हिंसक रुप लेने लगे, इसलिए कांग्रेस ने 1953 में तेलुगु भाषी क्षेत्रोँ को आंध्र प्रदेश राज्य के रुप मेँ पुनर्गठन स्वीकार कर लिया।

- इस समस्या के व्यापक अध्ययन के लिए भारत सरकार ने 1953 मेँ फजल अली की अध्यक्षता मेँ एक राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया।

- आयोग के अन्य सदस्य थे - ह्रदय नाथ कुंजरु तथा के एम. पणिक्कर।

- 1955 मेँ सौंपी गई अपनी रिपोर्ट मेँ आयोग ने भाषा को राज्योँ के पुनर्गठन का आधार स्वीकार कर लिया।

- इसने विभिन्न श्रेणियो के 27 राज्योँ का पुनर्गठन, 16 राज्यों व 3 केंद्र शासित प्रदेशो मेँ करने का सुझाव दिया।

- आयोग की अनुशंसाओं को प्रभावकारी बनाने के लिए संसद ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 पारित कर दिया।

6. नए राज्योँ का निर्माण

- नए राज्योँ के निर्माण के लिए अनेक मांगे हुई हैं, यथा - हरित प्रदेश (उत्तर प्रदेश), तेलंगाना (आंध्र प्रदेश), विदर्भ (महाराष्ट्र), बोडोलैंड (असम), गोरखालैंड (पश्चिम बंगाल), कोडगु (कर्नाटक, पुदुचेरी) दिल्ली इत्यादि।

- यह कहना अनावश्यक है कि राज्योँ की उपर्युक्त सभी मांगेँ पूरी नहीँ की जा सकती, क्योंकि इससे राज्योँ की संख्या का विस्तार, उस सीमा तक हो जाएगा, जिस सीमा तक वह संघीय व्यवस्था पर भारस्वरुप ही होगा। ऐसी मांगे जहाँ एक और आर्थिक दृष्टि से असंभाव्य हैं, वहीँ दूसरी और इनसे राष्ट्रीय की एकता को खतरा होगा।

- यह आवश्यक नहीँ है कि छोटे राज्योँ का प्रशासन सुचारु रुप से चलाया जा सकता है, जैसा की पूर्वोत्तर क्षेत्र, मेँ देखा गया है कि कुछ राज्योँ मेँ जिलो की तुलना मेँ मंत्रियोँ की संख्या अधिक है।

- नये राज्योँ के निर्माण मेँ अनेक समस्याएँ हैं, यथा – उच्चं न्यायालय, सचिवालय आदि संस्थाओं के निर्माण से संबंधित प्रशासनिक समस्याएँ, नई राजनीति राजधानी की स्थापना का व्यय इत्यादि।

- इसके बावजूद भी संघीय संसद ने, उत्तरांचल (वर्तमान उत्तराखंड), झारखंड तथा छत्तीसगढ तीन नये राज्योँ के निर्माण हेतु 2000 मेँ तीन अधिनियमों को पारित किया।

7. सन 1950 के पश्चात् बनाये गए राज्य

1. आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्र प्रदेश अधिनियम, 1953 द्वारा चेन्नई राज्य के कुछ क्षेत्रोँ को निकाल कर बनाया गया, भाषाई आधार पर पृथक राज्य।

2. गुजरात, महाराष्ट्र - 1960 मेँ मुंबई राज्य को दो भागोँ गुजरात तथा महाराष्ट्र मेँ विभाजित कर दिया गया।

3. केरल - त्रावणकोर-कोचीन की जगह बनाया गया (राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के द्वारा

4. कर्नाटक - राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 द्वारा मैसूर राज्य से पृथक कर बनाया गया। राज्य अधिनियम 1973 मेँ इसे कर्नाटक नाम दिया गया।

5. नागालैंड - नागालैंड राज्य अधिनियम, 1962 द्वारा असम राज्य से अलग बनाया गया राज्य।

6. हरियाणा - पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 द्वारा पंजाब के कुछ क्षेत्रों को निकाल कर बनाया गया।

7. हिमाचल प्रदेश - हिमाचल संघ राज्य क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश अधिनियम, 1970 द्वारा राज्य का दर्जा।

8. मेघालय - संविधान के 23 वेँ संशोधन अधिनियम, 1969 द्वारा इसे अलग राज्य के भीतर एक उपराज्य बनाया गया, पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 1971 द्वारा इसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

9. मणिपुर - त्रिपुरा पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 1971 द्वारा संघ राज्य क्षेत्र से पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

10. सिक्किम - 36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 द्वारा इसे पूर्ण राज्य की मानयता प्रदान की गई।

11. मिजोरम - मिजोरम राज्य अधिनियम 1986 द्वारा पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

12. अरुणाचल प्रदेश - अरुणाचल प्रदेश अधिनियम, 1986 द्वारा संघ राज्य क्षेत्र से पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

13. गोवा - गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 द्वारा संघ दमन और दीव राज्यक्षेत्र बना रहने दिया गया तथा गोवा को निकालकर राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।

14. छत्तीसगढ - यह राज्य मध्य प्रदेश से अलग करके बनाया गया है (84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 सृजित)

15. उत्तराखंड - यह राज्य उत्तर प्रदेश से अलग करके बनाया गया है (84वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा सृजित)। पहले इसका नाम उत्तरांचल था जिसे बाद मेँ बदल कर उत्तराखंड कर दिया गया।

16. झारखंड - यह राज्य बिहार से अलग करके बनाया गया है। (84वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा सृजित)।

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