भारतीय रिजर्व बैंक Reserve Bank of India

भारतीय रिजर्व बैंक Reserve Bank of India

1. परिचय

भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल सन 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ऐक्ट 1934 के अनुसार हुई। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन 1937 में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है। डा॰ रघुराम राजन भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने 4 सितम्बर 2013 को पदभार ग्रहण किया।

पूरे भारत में रिज़र्व बैंक के कुल 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांश राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं।मुद्रा परिचालन एवं काले धन की दोषपूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करने के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने 31 मार्च 2015 तक सन् 2005 से पूर्व जारी किये गये सभी सरकारी नोटों को वापस लेने का निर्णय लिया है।

2. प्रमुख कार्य

भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्य इस प्रकार वर्णित किये गये हैं

- "बैंक नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना, भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली परिचालित करना।"

- मौद्रिक नीति तैयार करना, उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना।

- वित्तीय प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण करना।

- विदेशी मुद्रा का प्रबन्धन करना।

- मुद्रा जारी करना, उसका विनिमय करना और परिचालन योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना।

- सरकार का बैंकर और बैंकों का बैंकर के रूप में काम करना।

- साख नियन्त्रित करना।

- मुद्रा के लेन देन को नियंत्रित करना

3. विभिन्न बैंकिंग दरें

1. रेपो रेट

- जैसा कि आप जानते हैं कि बैंकों को अपने रोज के काम लिए अक्सर बड़ी रकम की जरूरत होती है। अक्सर यह होता है कि इसकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। तब बैंक केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवर नाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

- रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और तब ही बैंक ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। अब अगर रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याजदर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

2. रिवर्स रेपो दर

- रिवर्स रेपो रेट ऊपर बताए गए रेपो रेट से उल्टा होता है। इसे ऐसे समझिए: बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

- वैसे कई बार रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी हो गई है तब वह रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है। इससे होता यह है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने लगते हैं।

3. कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर)

- मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान अक्सर इस पर भी कॉल ली जाती है। यहां बता दें कि सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात यानी कि कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।

- आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से लिक्विडिटी कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। वहीं सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी की सप्लाई बढ़ जाती है।

4. सीमांत स्थायी सुविधा

इस सुविधा के तहत बैंक आरबीआई से एक रात के लिये कम से कम 1 करोड तथा उसके गुणज में उधार ले सकते हैं।

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