मीरा बाई (1498 ईश्वी-1550 ईश्वी)

मीरा बाई (1498 ईश्वी-1550 ईश्वी)

16वीं शताब्दी ने मीरा बाई के रूप में भगवान कृष्ण की एक आसाधारण भक्त और एक रहस्यवादी  कवियत्री देखी | प्रामाणिक दस्तावेज़ों की कमी के कारण, उसकी जीवनी के बारे में दूसरे साहित्यों से पता लगाया गया है जिसमे उसके जीवन के बारे में बताया गया है |

सन 1498 में  शाही परिवार में राजस्थान के मेड़ता के चौकरी गाँव में जन्म हुआ | मीरा ने संगीत, राजनीति, धर्म और शासन में शिक्षा प्राप्त की थी | विष्णु भक्त के अनुयायियों के परिवार में पली बड़ी मीरा का विवाह  मेवाड़ के राजकुमार भोज राज  से 1516  AD में विवाह किया | युद्ध में लगी चोटों के कारण अपने पति को खोने के बाद, मीरा का भगवान कृष्ण ( जिनको उन्होनें बचपन से ही अपने प्रेमी/पति के रूप मे मान लिया था ) की सामाजिक सम्मेलनों में निर्भयता और अनुकरणीय धार्मिक भक्ति करने के कारण  उपेक्षा की गई और उसके ससुराल वालों द्वारा कई बार  उनका उत्पीड़न करने का प्रयास किया गया , लेकिन हर बार वह  किसी तरह से चमत्कारिक ढंग से बच गई |  कई किंवदंतियों तथा लोककथाओं के विवरण में इस तरह की घटनाओं का उल्लेख किया गया है | हालांकि इतिहास के पुनर्लेखन के अटकलों के बावजूद कहानियों मे कुछ विसंगताएं इतिहासकारों के लिए  राजनीतिक लाभ का कारण बनी |

उत्तर हिन्दू परंपरा की एक प्रसिद्ध कवियत्री, मीराबाई, भक्ति आंदोलन की संस्कृति का एक सम्मानित नाम था | भगवान कृष्ण की स्तुति में पूरी भावना के साथ गायी गई कई कविताओं का श्रेय मीरा बाई को जाता है जिसमें उनके अमर स्नेह और पवित्र प्रतिबिंब को दर्शाया है, उनके भजनों की भारत भर में प्रशंसा की गई है जिसकी प्रामाणिकता की जांच कई विद्वानों द्वारा की गई है |  

कृष्ण की भक्ति में अपना पूरा  जीवन  समर्पित करने वाली मीरा ने कृष्ण को योगी व प्रेमी की तरह दर्शाया है और उनकी कविताओं मे मीरा का कृष्ण की योगिनी बनने और उनसे  आध्यात्मिक शादी के बंधन में बंध कर उसकी उत्कंठा और प्रत्याशा के बारे में बताया गया  है |

मीरा की कविताएं जिसमे छंद है उन्हे “पद” कहा गया है | लोककथाएँ में वर्णित है कि किस तरह मीरा परम आनंद में  नाचती हुई कृष्ण की भक्ति में खुद को डुबाते हुए दूसरे ही मोहावस्था में प्रवेश करती हैं और वह सभी वर्ग के  भक्तों को आकर्षित करती थी | इनकी कविताओं के संस्करन वर्तमान समय में पुस्तकों, नाटकों, चित्रों आदि में पाये जाते हैं | चित्तोडगढ़ किले की  तरह कुछ हिन्दू मंदिर भी इनको समर्पित किए गए हैं | 

हालांकि उनके काम की विश्वसनीयता  और उससे संबन्धित कहानियाँ के बारे में पर्याप्त सबूतों के लिए छानबीन  की गई है, किंवदंतियों के अनुसार, मीरा बाई ने मेवाड़ के राज्य को छोड़ दिया था और फिर कभी शाही जीवन की विलासिता की ओर आकर्षित नहीं हुईं | वह तीर्थ पर चली गईं और वृंदावन, द्वारका में रहते हुए उन्होनें अपना पूरा ध्यान कृष्ण की भक्ति की तरफ लगा दिया, जहां उनकी भक्ति का कोई विरोधी नहीं था और ना ही उन्हे किसी भी तरह की असहमति का सामना करना पड़ता था  |

यह माना जाता है कि मीरा उत्तर भक्ति संतों के विश्वास का प्रतिनिधित्व करती है जो निराकार ब्रह्मा  की  वकालत करते हैं | उनके भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन के साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है | कृष्ण भक्ति में उसकी व्यक्तिगत ओर पवित्र रूप के बारे में बात करें तो  मीरा की कवितायें हिंदु देवता कृष्ण में पूर्ण समर्पण और विश्वास को दर्शाती है |

 विद्वानों का तर्क है कि 16वीं सदी के सामाजिक चरण में हिन्दू मुसलमान के संघर्ष के मध्य में मीरा लोगों के कष्ट के विकल्प के प्रतिबिंब के रूप में उभरी | और उसकी ईमानदारी और द्र्ढ़ विश्वास के प्रभाव ने  उस समय के उद्दंड सामंतों के साथ रिश्तों को भी बदल दिया |

लोगों के अनुसार, 1547 मे वह चमत्कारिक ढंग से मीरा  कृष्ण की मूर्ति में  समा  गईं, हालांकि इस बात के कोई भी सबूत नहीं हैं, मीरा ने उस समय के धार्मिक जोश को बढा दिया और उनके समर्पण ने साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया है जिसमे उनका अनंत प्रेम और विश्वास दिखता है |  

सभी विपक्षियों और उनके उत्पीड़नों के प्रयासों के बावजूद,उसकी श्रद्धा और निष्ठुर भक्ति के लिए स्वतन्त्रता का  संदेश  उसके द्र्ढ  संकल्प के प्रभाव को दिखती है | उसकी कवितायें अपने अधिकारों के लिए खड़े होना और अभियुक्तों को दोषी करार कर पकड़ने तथा मानव और परमात्मा के बीच मौजूद प्यार के प्रतिबिंब को दर्शाती है |

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